Ahkam-E-ShariatNikah
Aurat Ke Ghusl Ka Tarika
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🚿🧕🏻इस्लामी बहनों के ग़ुस्ल का त़रीक़ा🧕🏻🚿
🚿ग़ुस्ल में तीन फ़राइज़ हैं
➡ग़ुस्ल करने का सुन्नत त़रीक़ा ये हैं कि बिना ज़बान हिलाए दिल में इस त़रह़ निय्यत कीजिए कि:
👉🏻 “नवयतु अन अगतसिल मीन ग़ुस्ली लिर्फ़ाइल हदसी“
तर्जुमा:
“नियत की मैंने ग़ुस्ल करू नापाकी को दूर करने के लिए”
या आसान लफ्ज़ों में आप यू भी नियत कर सकते है:
“मैं पाकी हासिल करने के लिए ग़ुस्ल करती हूं!”
नियत से मुराद दिलमें पक्का इरादा कर लेना हैं और ज़बान से कहना अफ़ज़ल है।
अगर कोई नियत करना भूल गया मगर दिल में ग़ुस्ल का इरादा किया था तो भी ग़ुस्ल अदा हो गया। मगर नियत करना ज़रूरी है।
हैज़ व निफ़ास से पाक होने का तरीक़ा:
उम्मुल मोमिनीन हज़रते बीबी आयेशा सिद्दीका रादिआल्लाहु अन्हा से रिवायत है की एक औरत ने रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से हैज़ के ग़ुस्ल के बारे में पूछा,
आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उसे फरमाया,
यूं ग़ुस्ल करे। और फिर फरमाया,
“मुश्क (कस्तूरी) से बसा हुआ एक रुई (Cotton) का फाया लें, और उससे तहारत हासिल कर.”
वो समझ न सकी और कहा,
किस तरह तहारत हासिल करूं?
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इर्शाद फरमाया,
“सुब्हानअल्लाह ! इससे तहारत हासिल करो।”
उम्मुल मोमिनीन हज़रते बीबी आयेशा सिद्दीका रादिआल्लाहु अन्हा फरमाती है
“मैंने उस औरत को अपने तरफ खींच लिया और बताया की उसे ख़ून के मुक़ाम पर फेरे।
(बुख़ारी शरीफ़, ज़िल्द 1, सफा 201, हदीस नं 305)
नोट:
ईस ज़माने में मुश्क मिलना मुशिकल है लिहाजा उसकी जगह थोडासा गुलाब पानी या इत्र का फाया लें। उससे ख़ून के मुक़ाम यानी शर्मगाह को अच्छी तरह साफ करे फ़िर ग़ुस्ल करें।
निय्यत के बाद दोनों हाथ पहुंचो तक तीन-तीन बार धोइए फिर इस्तिन्जे की जगह धोइए चाहे नजासत हो या न हो फिर जिस्म पर अगर कहीं नजासत हो तो उसको दूर कीजिए फिर जिस त़रह़ नमाज़ के लिए वुज़ू करते हैं उसी त़रह़ वुज़ू कीजिए (वुज़ू के दौरान ग़ुस्ल के दो फ़र्ज़ अदा हो जाएंगे), अगर पैर रखने की जगह पर पानी जमा होता हो तो पैर ग़ुस्ल के आख़िर में धोए और अगर सख़्त ज़मीन हैं जैसा कि आजकल उमूमन बाथरूम में होती हैं या चौकी वगैरह (ऊंची जगह) पर ग़ुस्ल कर रही हो तो फिर पैर भी धो लीजिए, फिर जिस्म पर तेल की त़रह़ पानी चुपड़ लीजिए ख़ुसूसन सर्दियों में (इस दौरान साबुन भी लगा सकती हैं) फिर तीन बार सीधे कन्धे पर पानी बहाइए, फिर तीन बार उल्टे कन्धे पर फिर सर और पूरे बदन पर तीन बार पानी बहाए (सर और पूरे बदन पर पानी बहाने से ग़ुस्ल का तीसरा फ़र्ज़ भी अदा हो जाएगा), फिर ग़ुस्ल की जगह से अलग हो जाइए, अगर वुज़ू के दौरान पैर नही धोए थे तो अब धो लीजिए!_
(इस्लामी बहनों की नमाज़, सफ़्ह़ा-50,51)
➡सित्र खुला हो तो क़िब्ला की तरफ़ मुंह करके ग़ुस्ल नही करना चाहिए और अगर तहबन्द बांधे हो तो हरज नही!_
(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-42)
➡पूरे बदन पर हाथ फेर कर मल कर नहाइए, ऐसी जगह नहाइए कि किसी की नज़र न पड़े, ग़ुस्ल करते हुए किसी भी क़िस्म की गुफ़्तगू (बातचीत) मत कीजिए कोई दुआ़ भी न पढ़िए (अक्सर इस्लामी बहनें ग़ुस्ल करते हुए बिस्मिल्लाह शरीफ़ और कलिमा शरीफ़ वग़ैरा पढ़ती रहती हैं जो कि नही पढ़ना चाहिए), नहाने के बाद तौलिये वग़ैरा से बदन पोंछने में हरज नही, नहाने के बाद फौरन कपड़े पहन लीजिए, अगर मकरूह़ वक़्त न हो तो दो रक्अ़त नफ़्ल अदा करना मुस्तह़ब हैं!_
(आम्मए क़ुतुबे फ़िक़्हे ह़नफ़ी)
👉🏻याद रहे, ग़ुस्ल में तीन फ़र्ज़ हैं जिनका अदा करना ज़रूरी हैं वरना ग़ुस्ल नही होगा!
🚿1- कुल्ली करना
🚿2- नाक में पानी चढ़ाना
🚿3- तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना
🚿ग़ुस्ल के फ़राइज़ और उनकी तफ़्सील
➡ग़ुस्ल में तीन फ़र्ज़ हैं जिनका अदा करना ज़रूरी हैं वरना ग़ुस्ल नही होगा!
🚿1- कुल्ली करना
🚿2- नाक में पानी चढ़ाना
🚿3- तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना
🚿1- कुल्ली करना
👉🏻मुंह में थोड़ा सा पानी लेकर पिच करके ड़ाल देने का नाम कुल्ली नही, बल्कि मुंह के हर पुर्ज़े, गोशे, होंट से ह़ल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाए! इसी त़रह़ दाढ़ों के पीछे गाल की तह में, दातों की खिड़कियों और जड़ों और ज़बान के चारों त़रफ़ बल्कि ह़ल्क के किनारों तक पानी बहे! रोज़ा न हो तो ग़र-गरा भी कीजिए कि सुन्नत हैं! दांतों में छालिया (सुपारी वग़ैरा) के दाने या बोटी के रेशे वग़ैरा हो तो उनको छुड़ाना ज़रूरी हैं! हां अगर छुड़ाने में ज़रर (यानी नुक्सान) का अन्देशा हो तो मुआ़फ़ हैं!
ग़ुस्ल से पहले दांतों में रेशे वग़ैरा महसूस न हुए और रह गए यहां तक कि नमाज़ भी पढ़ ली और बाद में पता चला कि दांतों में कुछ रह गया हैं तो बाद में दांतों से रेशे वग़ैरा छुड़ाकर पानी बहाना फ़र्ज़ हैं, पहले जो नमाज़ पढ़ी थी वो हो गई!_
हिलता हुआ दांत जो मसाले से जमाया गया या तार से बांधा गया और तार या मसाले के नीचे पानी न पहुंचे तो मुआ़फ़ हैं!_
(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-38)
🚿2- नाक में पानी चढ़ाना
👉🏻जल्दी जल्दी नाक की नोक पर पानी लगा लेने से ये फ़र्ज़ अदा नही होगा बल्कि जहां तक नर्म जगह हैं यानी सख़्त हड्डी के शुरू तक धुलना लाज़िमी हैं और इसका त़रीक़ा ये हैं कि पानी को सुंघ कर ऊपर खींचिए! ये ख़याल रखे कि बाल बराबर भी जगह धुलने से न रह जाए वरना ग़ुस्ल नही होगा! नाक के अन्दर रींठ सूख गई हैं तो उसका छुड़ाना फ़र्ज़ हैं! नीज़ नाक के बालों का धोना भी फ़र्ज़ हैं!_
(ऐज़न- सफ़्ह़ा-442,443)
🚿3- तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना
👉🏻सर के बालों से लेकर पैर के तल्वों तक जिस्म के हर पुर्ज़े और हर हर रोंगटे पर पानी बह जाना ज़रूरी हैं, जिस्म की कुछ जगहें ऐसी हैं कि अगर ऐह़तियात़ न की तो वो सूखी रह जाएंगी और ग़ुस्ल नही होगा!_
(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-39)
🚿इस्लामी बहनों के लिए ग़ुस्ल की 23 ऐह़तियात़ें
01- अगर इस्लामी बहन के बाल गुंधे हुए हो तो सिर्फ़ जड़ तर कर लेना ज़रूरी हैं खोलना ज़रूरी नही, हां अगर चोटी इतनी सख़्त गुंधी हुई हो कि बिना खोले जड़ें तर नही होगी तो खोलना ज़रूरी हैं!
02- अगर कानों में बाली या नाक में नथ का छेद (सुराख़) हो और वो बन्द न हो तो उसमें पानी बहाना फ़र्ज़ हैं! वुज़ू में सिर्फ़ नाक के नथ के छेद में और ग़ुस्ल में अगर कान और नाक दोनों में छेद हो तो दोनों में पानी बहाइए!
03- भवों और उनके नीचे की ख़ाल का धोना ज़रूरी हैं!
04- कान का हर पुर्ज़ा और उनके सुराख़ का मुंह धोइए!
05- कानों के पीछे के बाल हटाकर पानी बहाइए!
06- ठोडी और गले का जोड़ मुंह ऊपर उठाकर धोए कि ये बग़ैर मुंह उठाए नही धुलेगा!
07 हाथों को अच्छी त़रह़ उठाकर बगलें धोइए!
08- बाज़ू का हर पहलू धोइए!
09- पीठ का हर ह़िस्सा धोइए!
10- पेट की बल्टे उठाकर धोइए!
11- नाफ़ में भी पानी ड़ालिए अगर पानी बहने में शक हो तो नाफ़ में उंगली ड़ालकर धोइए!
12- जिस्म का हर रोंगटा जड़ से नोक तक धोइए!
13- रान और पेडू (नाफ़ से नीचे के ह़िस्से) का जोड़ धोइए!
14- जब बैठ कर नहाए तो रान और पिंडली के जोड़ पर भी पानी बहाना याद रखिए!
15- दोनों सुरीन के मिलने की जगह का ख़याल रखिए ख़ास जब तब खड़ी होकर नहाए!
16- रानों की गोलाई और
17- पिंडलियों की करवटों पर पानी बहाइए!
18- ढ़ल्की हुई पिस्तान को उठाकर पानी बहाइए!
19- पिस्तान और पेट के जोड़ की लकीर धोइए!
20- फ़र्जे ख़ारिज (यानी औ़रत की शर्मगाह के बाहर के ह़िस्से) का हर गोशा हर टुकड़ा ऊपर नीचे खूब ऐह़तियात़ से धोइए!
21- फ़र्जे दाख़िल (यानी शर्मगाह के अन्दरूनी ह़िस्से) में उंगली ड़ालकर धोना फ़र्ज़ नही बल्कि मुस्तह़ब हैं!
22- अगर हैज़ या निफ़ास से फ़ारिग़ होकर ग़ुस्ल करे तो किसी पुराने कपड़े से शर्मगाह के अन्दर से ख़ून का असर साफ़ कर लेना मुस्तह़ब हैं!(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-39,40)
23-अगर नेल पॉलिश नाखुनों पर लगी हुई हैं तो उसका छुड़ाना फ़र्ज़ हैं वरना वुज़ू व ग़ुस्ल नही होगा, हां मेहंदी हो तो हरज नही!_
(इस्लामी बहनों की नमाज़- सफ़्ह़ा-53,54)
🚿ग़ुस्ल फ़र्ज़ होने के 5 अस्बाब🚿
*1-* मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो कर मख़रज से निकलना!
*2-* एह़तिलाम यानी सोते में (नींद में) मनी का निकल जाना!
*3-* ह़श्फ़ा यानी सरे ज़कर का औ़रत के आगे या पीछे दाख़िल हो जाना चाहे शहवत हो या न हो, इन्जाल हो या न हो, दोनों ही पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाएगा, बशर्त़े की दोनों मुकल्लफ़ हो और अगर एक बालिग़ हैं तो उस बालिग़ पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हैं और नाबालिग़ पर फ़र्ज़ नही लेकिन ग़ुस्ल का हुक्म दिया जाएगा!
*4-* हैज़ से फ़ारिग़ होना!
*5-* निफ़ास (यानी बच्चा पैदा होने के बाद जो खून आता हैं) से फ़ारिग़ होना!
(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-43,45,46)
🚿वो सूरतें जिनमें ग़ुस्ल फ़र्ज़ नही🚿
*1-* मनी शहवत के साथ अपनी जगह से जुदा न हुई बल्कि बोझ उठाने या बुलन्दी से गिरने या फ़ुज़्ला ख़ारिज करने के लिए ज़ोर लगाने की सूरत में ख़ारिज हुई तो ग़ुस्ल फ़र्ज़ नही! वुज़ू बहरह़ाल टूट जाएगा!
*2-* अगर मनी पतली पड़ गई और पेशाब के वक़्त या वैसे ही बिना शहवत इसके क़तरे निकल आए तो ग़ुस्ल फ़र्ज़ नही हुआ मगर वुज़ू टूट जाएगा!
*3-* अगर एह़तिलाम होना याद हैं मगर इसका कोई असर कपड़े वग़ैरा पर नही तो ग़ुस्ल फ़र्ज़ नही!
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-43)
🚿ग़ुस्ले जनाबत न करने वाले का अज़ाब🚿
➡ह़ज़रते सय्यिदतुना अबान बिन अ़ब्दुल्लाह बज्ली رضي الله عنه फ़रमाते हैं:
👉🏻”हमारा एक पड़ोसी मर गया तो हम कफ़न व दफ़्न में शरीक़ हुए, जब क़ब्र खोदी गई तो उसमें बिल्ले (Cat) के जैसा एक जानवर था, हमने उसको हटाने के लिए मारा मगर वो न हटा! चुनान्चे दुसरी क़ब्र खोदी गई तो उसमें भी वोही बिल्ला मौजूद था और उसे भी वहां से हटाने के लिए मारा मगर वो अपनी जगह से नही हिला! इसके बाद तीसरी क़ब्र खोदी गई तो उसमें भी यही मुआ़मला हुआ आख़िर लोगों ने मशवरा दिया कि इसको इसी क़ब्र में दफ़्न कर दो, जब उसको दफ़्न कर दिया गया तो क़ब्र में से एक ख़ौफ़नाक आवाज़ सुनी गई! तो हम उस शख़्स की बेवा के पास गए और उस से मरने वाले के बारे में दर्याफ़्त किया कि उसका अ़मल क्या था? बेवा ने बताया कि वो ग़ुस्ले जनाबत (यानी फ़र्ज़ ग़ुस्ल) नही करता था!”
(शर्हुस्सुदूर बि शर्ह़ि ह़ालिल मौता वल क़ुबूर- सफ़्ह़ा-179)
🚿ग़ुस्ले जनाबत में ताख़ीर कब ह़राम हैं🚿
➡इस्लामी बहनों, वो बदनसीब ग़ुस्ले जनाबत करता ही नही था! ग़ुस्ले जनाबत में देर करना गुनाह नही अलबत्ता इतनी ताख़ीर ह़राम हैं कि नमाज़ का वक़्त निकल जाए, चुनान्चे बहारे शरीअ़त में हैं:_
👉🏻”जिस पर ग़ुस्ल वाजिब हैं और अगर वो इतनी देर कर चुकी कि नमाज़ का आख़िर वक़्त आ गया तो अब फ़ौरन नहाना फ़र्ज़ हैं, अब देर करेगी तो गुनाहगार होगी!”_
(बहारे शरीअ़त- ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-47, 48)
🚿फ़र्ज़ ग़ुस्ल में एह़तियात़ की ताकीद🚿
➡रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं:
“जो शख़्स ग़ुस्ले जनाबत में एक बाल की जगह बिना धोए छोड़ देगा उसके साथ आग से ऐसा ऐसा किया जाएगा!”
(यानी अज़ाब दिया जाएगा)
(सुनने अबु दाउद- जिल्द-1, सफ़्ह़ा-117, ह़दीस-249)
🚿ग़ुस्ल के बारे में कुछ सवाल व उनके जवाब🚿
सवाल न. 1-
अगर जिस्म में कहीं पर ज़ख्म हो और पट्टी भी बंधी हो तो क्या ग़ुस्ल के वक़्त उस पट्टी को खोलकर ज़ख्म पर पानी बहाना ज़रूरी हैं?
➡जवाब न. 1-
“`ज़ख्म पर पट्टी वग़ैरा बंधी हो और उसे खोलने में नुक्सान या हरज हो तो पट्टी पर ही मस्ह़ कर लेना काफ़ी हैं नीज़ किसी जगह मरज़ या दर्द की वजह से पानी बहाने से नुक्सान होता हो तो उस पूरे ह़िस्से पर मस्ह़ कर लीजिए!
पट्टी ज़रूरत से ज़्यादा जगह को घेरे हुए नही होनी चाहिए वरना मस्ह़ काफ़ी नही होगा! अगर ज़रूरत से ज़्यादा जगह घेरे बग़ैर पट्टी बांधना मुम्किन न हो जैसे बाज़ू पर जख़्म हैं मगर पट्टी बाज़ूओं की गोलाई में बांधी हैं जिसकी वजह से बाज़ू का अच्छा ह़िस्सा भी पट्टी के अन्दर छुपा हैं, तो अगर खोलना मुम्किन हो तो खोल कर उस ह़िस्से को धोना फ़र्ज़ हैं और अगर खोलने से नुक्सान पहुंचने का अन्देशा हो तो पूरी पट्टी पर मस्ह़ कर लेना काफ़ी हैं, बदन का वो अच्छा ह़िस्सा भी धोने से मुआ़फ़ हो जाएगा!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-40)
सवाल न. 2-
ग़ुस्ल कब फ़र्ज़ होता हैं ये तो आपकी पोस्ट से पढ़ चुकी मगर ग़ुस्ल करना सुन्नत कब हैं ये भी बता दें?
➡जवाब न. 2-
“`ग़ुस्ल करने के 5 सुन्नत मवाक़ेअ हैं:
(1) जुमुआ़, (2) ई़दुल फ़ित़्र, (3) ई़दुल अज़्ह़ा, (4) अरफ़ा के दिन {यानी 9 ज़ुल ह़िज्जतुल हराम} और (5) एह़राम बांधे तब ग़ुस्ल करना सुन्नत हैं!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-46)
(दुर्रे मुख़्तार: जिल्द-1, सफ़्ह़ा-339,341)
सवाल न. 3-
अगर जुमुआ़ और ई़द या जनाबत का ग़ुस्ल करना हो तो क्या सबके लिए अलग अलग ग़ुस्ल करे या सबका सवाब एक ही ग़ुस्ल में मिल जाएगा?
➡जवाब न. 3-
“`जिस पर चन्द ग़ुस्ल हो जैसे जनाबत या एह़तिलाम भी हुआ, ई़द भी हैं और जुमुआ़ का दिन भी, तो तीनों की निय्यत करके एक ग़ुस्ल कर लिया, सब अदा हो गए और सब का सवाब मिलेगा!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-47)
सवाल न. 4-
अगर किसी को सख़्त जुकाम, नज़्ला हो गया और ग़ुस्ल भी फ़र्ज़ हो गया और गुमान हैं कि सर गीला करने से नुक्सान होगा तो इस सूरत में क्या करे?
➡जवाब न. 4-
“`ज़ुकाम, नज़्ला वग़ैरा हो और ये गुमाने सह़ीह़ हो कि सर से नहाने में मरज़ बढ़ जाएगा या दुसरी बीमारी पैदा होगी तो कुल्ली कीजिए, नाक में पानी चढ़ाइए और गरदन से नहाइए, सर के ह़िस्से पर भीगा हुआ हाथ फेर लीजिए ग़ुस्ल हो जाएगा! सेह़तमन्द होने के बाद सिर्फ़ सर धो लीजिए, नए सिरे से ग़ुस्ल करना ज़रूरी नही!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-40)
सवाल न. 5-
अगर बालों में गिरेह (गांठे) पड़ जाए तो क्या ग़ुस्ल सह़ी होगा?
➡जवाब न. 5-
“`बाल में गिरेह पड़ जाए तो ग़ुस्ल में उसे खोलकर पानी बहाना ज़रूरी नही, ग़ुस्ल हो जाएगा!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-40)
सवाल न. 6-
जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो क्या वो कुरआन के अलावा दुसरी दीनी किताबों को छू सकती हैं?
➡जवाब न. 6-
“`बे वुज़ू या वो जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो उनको फ़िक़्ह, तफ़्सीर व ह़दीस की किताबों का छूना मकरूह हैं! और अगर इनको किसी कपड़े से छुआ चाहे उसे पहने या ओढ़े हुए हो तो भी कोई हरज नही! मगर आयते कुरआनी या इसके तरजमे पर इन किताबों में भी हाथ रखना ह़राम हैं!“`
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-49)
सवाल न. 7-
जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो क्या वो अज़ान का जवाब और दुरूद शरीफ़ पढ़ सकती हैं?
➡जवाब न. 7-
“`जी हां, जिन पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो उनको दुरूद शरीफ़ और दुआ़एं पढ़ने में हरज नही, मगर बेहतर ये हैं कि वुज़ू या कुल्ली कर के पढ़े!“`
“`बे ग़ुस्ल को अज़ान का जवाब देना भी जाएज़ हैं!“` *²*
(बहारे शरीअ़त: ह़िस्सा-2, सफ़्ह़ा-49)
(फ़तावा आ़लमगीरी: जिल्द-1, सफ़्ह़ा-38)
सवाल न. 8-
*ग़ुस्ल ख़ाने (Bathroom) में पेशाब करना कैसा हैं?
➡जवाब न. 8-
“`ग़ुस्ल ख़ाने में पेशाब करने से वस्वसे पैदा होते हैं! ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मुग़फ़्फ़ल رضي الله عنه से रिवायत हैं कि प्यारे आक़ा ﷺ ने फ़रमाया: “कोई शख़्स ग़ुस्ल ख़ाने में पेशाब न करे, जिस में फिर वो नहाए या वुज़ू करे, क्यूंकि अक्सर वस्वसे इसी सेवस्वसे इसी से होते हैं!”“`
“`अगर ग़ुस्ल ख़ाने की ढ़लान (Slop) बेहतर हैं और इत्मिनान हैं कि पेशाब करने के बाद पानी बहने से अच्छी त़रह़ फ़र्श पाक हो जाएगा तो ह़रज नही! फिर भी बेहतर ये हैं कि वहां पेशाब न करे!“`
(अबू दाउद: जिल्द-1, सफ़्ह़ा-44, ह़दीस-27)
(मिरआत: जिल्द-1, सफ़्ह़ा-266, मुलख़्ख़सन)
सवाल न. 9-
ग़ुस्ल के वक़्त बिना कपड़ों के जो वुज़ू किया जाता हैं क्या उसी वुज़ू से नमाज़ अदा कर सकती हूं? या ग़ुस्ल के बाद नमाज़ के लिए फिर से वुज़ू करना होगा?
➡जवाब न. 9-
“`ग़ुस्ल के लिए जो वुज़ू किया था वोही काफी हैं चाहे बिना कपड़े (यानी नंगे) नहाए, अब ग़ुस्ल के बाद दुबारा वुज़ू करना ज़रूरी नही बल्कि अगर वुज़ू न भी किया हो तो ग़ुस्ल कर लेने से आज़ाए वुज़ू पर भी पानी बह जाता हैं लिहाज़ा वुज़ू भी हो गया, और बा वुज़ू कपड़े बदलने या अपना या किसी दुसरे का सित्र देखने से भी वुज़ू नही जाता!“`
(इस्लामी बहनों की नमाज़: सफ़्ह़ा-41)